हिन्द अभिमान टाइम्स गोरखपुर /RPP NEWS
अनिल कुमार कि रिपोर्ट।
बढया चौक गोरखपुर। गोरखपुर महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र पीपीगंज गोरखपुर के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ विवेक प्रताप सिंह बताते है कि गर्मियों में तापमान 45 डिग्री के पार चला जाता है। ऐसे मौंसम में पशु दबाव की स्थिति में आ जाते हैं। इस दबाव की स्थिति का पशुओं की पाचन प्रणाली और दूध उत्पादन क्षमता पर उल्टा प्रभाव पड़ता है। इस मौसम में नवजात पशुओं की देखभाल में अपनायी गयी तनिक सी भी असावधानी उनकी भविष्य की शारीरिक वृद्धि, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधी क्षमता और उत्पादन क्षमता पर स्थायी कुप्रभाव डाल सकती है। गर्मी में पशुपालन करते समय ध्यान न देने पर पशु के सूखा चारा खाने की मात्रा में 10 से 30 प्रतिशत और दूध उत्पादन क्षमता में 10 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। साथ ही साथ अधिक गर्मी के कारण पैदा हुए आक्सीकरण तनाव की वजह से पशुओं की बीमारियों से लड़ने की अंदरूनी क्षमता पर बुरा असर पडता है और आगे आने वाले बरसात के मौसम में वे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। जिससे उनकी उत्पादन व प्रजनन क्षमता में गिरावट आ जाती है। पशुओं के शरीर पर दिन में तीन या चार बार जब वायुमंडल तापमान अधिक हो ठंड़े पानी का छिड़काव करें। यदि सम्भव हो तो तालाब व जोहड़ में भैसों को ले जाएं। प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि दोपहर को पशुओं पर ठंड़े पानी का छिड़काव उनके उत्पादन व प्रजनन क्षमता को बढ़ानें में सहायक होता है। गर्मियों में पशु चारा चरना कम कर देते है। गर्मियों में जल वायुमंडलीय तापमान पशुओं के शारीरिक तापमान से अधिक हो जाता है तो पशु सूखा चारा खाना कम कर देते है क्योंकि सूखा चारा को पचाने में शरीर में उष्मा का अधिक मात्रा में निकलता है। अतः पशुओं को चारा प्रातः या सांयकाल में ही उपलब्ध कराना चाहिए तथा जहां तक सम्भव हो पशुओं के आहार में हरे चारे की मात्रा अधिक रखें। गर्मी में पशुपालन करते समय पशुओं को हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध कराना के दो लाभ हैं, एक तो पशु अधिक चाव से स्वादिष्ट एवं पौष्टिक चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, तथा दूसरा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करता है।यदि पशुओं को चारागाह में ले जाते है तो प्रातः व सांयकाल को ही चराना चाहिए जब वायुमंडलीय तापमान कम हो । गर्मी के मौसम में पशुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक। इसलिए पशुओं को पर्याप्त मात्रा में दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाना चाहिये। जिससे शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।पशुशाला के आस-पास छायादार वृक्षों का होना परम आवश्यक है। यह वृक्ष पशुओं को छाया तो प्रदान करते है साथ ही उन्हें गरम लू से भी बचाते है। हरे चारे हेतु पशुपालक को चाहिए कि गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च, अप्रैल माह में चरी, मूंग, मक्का, काऊपी, आदि की बुवाई कर दें जिससे गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके। ऐसे पशुपालन जिनके पास सिंचित भूमि नहीं है उन्हें समय से पहले हरी घास काटकर एवं सुखाकर तैयार कर लें। यह घास प्रोटीन युक्त, हल्की व पौष्टिक होती है।