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Mon. Oct 7th, 2024

वर्तमान परिवेश में पितृपक्ष माह का महत्व युवा पीढ़ी का योगदान


युवा पीढ़ी को भी अपने कर्तव्य का बोध, अपने कर्तव्य दायित्व का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण =(समाजसेवी दीप्तिमान)


सुनील मणि त्रिपाठी गोरखपुर सदर तहसील प्रभारी की रिपोर्ट ।अनादी सनातन काल से भारतीय परंपरा में पितृपक्ष माह पौराणिक आध्यात्मिक और प्राकृतिक महत्व है। वस्तुत प्रत्येक जीवधारी अपने पूर्वज की संतति होता है, ऐसा विज्ञान और अध्यात दोनों का मानना है। अपने कुल की परंपरा का निर्वहन करना सभी धर्म में एक साक्ष्य प्राकट्य है।भारतीय परंपरा अपने पूर्वज को नमन करने का एक उत्साहित अवसर पितृपक्ष में परिलक्षित होता है। हम कौन हैं ,हम कहां से हैं, हम कहां हैं, इसकी खोज बिंदु भी पितृपक्ष माह में अनादि काल से हैं। गया में पिंड को परना ,काशी में मोक्ष, हरिद्वार में पितृ की पूजा आदि सनातन काल की संस्कृति के वैभव को प्रकट करती है। जिस प्रकार हम सुख के उत्सव में अपने पितृ को याद करते हैं, यह दर्शाता है कि भारतीय परंपरा अपने गौरवशाली पूर्वज परंपरा का अनादि काल से नमन करते आ रही है। पितृपक्ष में वर्तमान युवा पीढ़ी को यह एक शाब्दिक संदेश जाता है कि आपके पूर्वजों ने आपके पितामह ने किस प्रकार से मरुभूमि में वृक्ष का रोपण किया,जिसकी छाया में आज आप पुष्पित और पल्लवित है।इस संसार में प्रत्येक प्राणी को ऊर्जा पुंज के रूप में अपने जीवन काल की ऊर्जा को समाहित करते हुए दे अपने प्रत्येक भौतिक कार्यों को पूर्ण करते हुए इस संसार से निशस्तवार संसार विलीन होना है,लेकिन उसके किए गए सत्कर्मों को उसकी पीडिया द्वारा याद किए जाने पर हम इस समाज को एक नई दशा और दिशा देते हैं। प्रत्येक परिवार का अपना एक इतिहास होता है, उसे गौरवशाली इतिहास से समाज को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस महान पखवाड़े में हम संयम त्याग और तपस्या के माध्यम से अपने आने वाले भविष्य का भी निर्माण करते हैं। यह महान पर्व यह दर्शाता है कि किस प्रकार हमारे पूर्वजों ने कम से कम संसाधनों ने भी विकास को गति दी पितृपक्ष का वैज्ञानिक महत्व यह दर्शाता है,की भूमि पर जल देना उसे अज्ञात बीज को भी रोपण करता है,जो बाद में बरगद और पीपल के समान बट वृक्ष बन जाता है और हमें जीवनदाई ऑक्सीजन को भी देता है।वर्तमान युवा पीढ़ी का यह नैतिक दायित्व है। भारत की सनातन परंपरा हमें सत्य अहिंसा और गौरवशाली देश का भी पाठ पढ़ती है ,यदि हमारे पूर्वज संयुक्त हिंदू परिवार की व्याख्या को परीक्षित करते हुए गौ लोक को वास में है तो हम सबका भी यह कर्तव्य है, अपने कुनबे अपने परिवार को संयुक्त रूप से परिलक्षित करें।यह राम का देश है ,जहां राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए राजपथ का त्याग किया।यह स्वर्ण कुमार का देश है, जहां स्वर्ण कुमार ने जीवित रहते हुए अपने अपने माता-पिता को कंधों पर जिस प्रकार से तीर्थ यात्रा कराया। यह वास्तव में जीवित माता-पिता को पितृपक्ष के रूप में समान सम्मान देने का एक संदेश देता है।वर्तमान युवा पीढ़ी भौतिकवाद के दबाव में है यह कहना अतिशयोक्ति होगा कि वर्तमान युवा पीढ़ी अपने मां-बाप से विमुख है, ऐसा नहीं है वर्तमान युवा पीढ़ी अपने मां-बाप की सेवा करना चाहती है, परंतु पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव एवं रोजगार की खोज में उसे अपने मां-बाप को छोड़कर भी जाना पड़ता है। हमें ऐसे समाज को विकसित करना होगा जिसमें प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक की सेवा करना महत्त्वपूर्ण है। इस समाज रूपी जीवन में हमारे वृद्ध मां-बाप या किसी के भी मां-बाप भूखे ना रहे बिना आवास भौतिक संसाधनों के बिना ना रहे उन्हें समय से औषधि मिले उन्हें सम्मान मिले उनकी बातों को सुनने वाला कोई हो, वर्तमान भौतिक युग में बदलते हुए परिवेश में पौराणिक पितृपक्ष पर्वसे प्रेरणा लेते हुए एक आधुनिक संकल्प को भी संकल्पित करना होगा।यदि हम जहां पर वास कर रहे हैं, उसके आसपास यदि किसी का बेटा या बेटी परिवारजन किसी का संतति साथ नहीं है, तो समाज का कर्तव्य है उसे जीवित मां-बाप की सेवा करना वास्तव में पितृपक्ष को नमन करने की यह एक ज्योति पुंज के रूप में प्रलक्षित समाज में होगा जो यह संदेश देगा यह वही भारत देश है जहां कोई व्यक्ति भी यदि उसका कोई पाल्य नहीं है तो हम सब उसके पालय के समान है । पितर पक्ष को हमें रोज संकल्पित करना होगा प्रत्येक दिवस अपने मां-बाप अपने अपने वरिष्ठों को सेवा करते हुए संपूर्ण विश्व को यह संदेश देना है कि भारतवर्ष का प्रत्येक बेटा अनादि काल से सर्वप्रथम अपने मां-बाप के प्रति समर्पित एवं उनकी सेवा के लिए कटिबंध है। उसके बाद वह जीवन के अन्य सभी अपने कर्तव्यों को पूर्ण कर्तव्य है वह उसका परिवार हो जाए वह समाज की सेवा हो चाहे देश के लिए अपने सर्वोच्च बलिदान देना हो या इस समाज को गतिशीलता प्रदान करना हो आदिकाल से से भारत सोने की चिड़िया रहा है।वर्तमान युवा पीढ़ी को अपने कर्तव्यों का बोध करते हुए निश्चित रूप से इस समाज को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए की संपूर्ण विश्व आज भारत को विश्व गुरु की ओर देख रहा है और वह भी देखें कि भारत में कोई वृद्ध विद्या आश्रम में नहीं रहता।यदि वृद्ध आश्रम है ,तो वह परिवार के रूप में है ना कि किसी को अस्पताल या जेल के रूप में है। निश्चित रूप से बहुत से वृद्ध जनों के अपने नहीं होते हैं, आधुनिक परिपेक्ष में पितर पक्ष का महत्व हमें सिखाता है की संपूर्ण भारत का कोई भी वृद्धि नागरिक वरिष्ठ नागरिक भौतिक सुविधाओं से वंचित न रहे यदि हम सब मिलकर प्रत्येक भारतवर्ष के वरिष्ठ नागरिकों को संपूर्ण रूप से आज की मानवी बहुत ही सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सक्षम होते हैं तो निश्चित रूप से अपने पितरों को जल अर्पण तिल अर्पण भोज अर्पण की यह सबसे अच्छी विधि होगी इससे हमारे आदिकल के पितृ हमें आशीर्वाद देंगे और वह पितृ जो वर्तमान समय में हमारे साथ जीवित अवस्था में उनका हमें भौतिक आशीर्वाद तात्कालिक रूप से प्राप्त होगा यह देश समाज और हम सबके समृद्धि के लिए अति आवश्यक अभिकरण साबित होगा पितर पक्ष की सार्थकता वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ भी है हमें अपने पशु पक्षियों को नित्य शुद्ध उनके भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए कोई भी पशु-पक्षी जल के बिना अभी किंचित ना रह सके निश्चित रूप से वर्तमान युवा अपने कर्तव्यों के प्रति अपने सनातन धर्म की रक्षा के प्रति शिक्षित होने के साथ-साथ समर्पित है हम सब यह संकल्प लेना है ।भारतवर्ष का कोई भी वरिष्ठ नागरिक बिना किसी सुविधाओं के ना रहे उसे किसी प्रकार की कमी महसूस ना हो वसुदेव कुटुंबकम की भावना अनादि काल से भारत के परंपरा रही है इस परंपरा का निर्माण करते हुए हम सब अपने ज्ञात एवं अज्ञात समस्त पितृ जनों का नमन करते हैं उनसे आशीर्वाद की आशा करते हैं और यह संकल्प लेते हैं कि इस देश की सुख समृद्धि में वरिष्टों के आशीर्वाद के साथ पितरों के आशीर्वाद के साथ निश्चित रूप से वर्तमान राष्ट्रवाद के प्रफुल्लित को विकासवाद के साथ संपूर्ण विश्व के लिए भारत का युवा एक आदर्श प्रस्तुत करेगा।

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