क्या आप जानते हैं श्री राम के मामा का नाम? आइये जानते हैं भगवान राम से जुडी कुछ रोचक बातें
RPP NEWS, आस्था डेस्क। छत्तीसगढ़ में भगवान राम की एक अनोखी परंपरा है, जहां मामा अपने भांजों के चरण स्पर्श करते हैं। यह परंपरा भगवान राम के ननिहाल से जुड़ी हुई है, जो महाकोशल क्षेत्र में स्थित है।
माना जाता है कि भगवान राम की माता कौशल्या का जन्म महाकोशल क्षेत्र में हुआ था। भगवान राम ने अपने वनवास के 12 साल इसी क्षेत्र में बिताए थे। इसलिए, छत्तीसगढ़ के लोग भगवान राम को अपने भांजे के रूप में पूजते हैं।
इस परंपरा के पीछे एक खास राज है। भगवान राम के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल वाल्मिकी आश्रम भी छत्तीसगढ़ के तुरतिया पहाड़ पर मौजूद है। भगवान राम को लेकर छत्तीसगढ़ में कई प्रमाण और कथाएं प्रमाणित हैं।
छत्तीसगढ़ के लोग भगवान राम के प्रति आगाध आस्था रखते हैं। भगवान राम को लेकर यहां कई त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं। भगवान राम के नाम पर यहां कई मंदिर और आश्रम भी हैं।
इस परंपरा को निभाने के लिए छत्तीसगढ़ के लोग अपने भांजों का सम्मान करते हैं। वे अपने भांजों के चरण स्पर्श करते हैं और उन्हें भगवान राम के रूप में पूजते हैं। यह परंपरा छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
गुप्तेश्वर धाम के पीठाधीश्वर स्वामी डॉ. मुकुंददास महाराज ने बताया कि बाल्मिक रामायण और वशिष्ठ रामायण में प्रदेश के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में रावण की चौकियां हुआ करती थीं। महाकोशल क्षेत्र जिसमें कुछ हिस्सा अब छत्तीसगढ़ चला गया है, भी शामिल था।
उन्होंने बताया कि यही महाकोशल माता कौशल्या का मायका कहलाता है। जिसमें 18 से अधिक जिले हुए करते थे। जब राजा दशरथ ने राजसूय यज्ञ किया तब वे विंध्य के राजाओं से मिलने भी आए, जहां माता कौशल्या को देखकर प्रभावित हुए और उन्हें अपनी रानी बना लिया।
उन्होंने बताया कि भगवान राम जब वनवास गए तब वे ननिहाल होते हुए ही दक्षिण भारत की ओर गए थे। इतिहासकार अरुण शुक्ल व डीपी गुप्ता की मानें तो माता कौशल्या का जन्म महाकोशल में ही हुआ था। इसी आधार पर उनका नाम कौशल्या पड़ा। उस समय महाकोशल क्षेत्र कोशल कहलाता था। मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद इसका कुछ हिस्सा अब छत्तीसगढ़ में चला गया है।
उन्होंने बताया कि विशेष बात यह है कि महाकौशल के साथ छत्तीसगढ़ में यही परंपरा निभायी जाती है। वहां भी लोग भांजों का सम्मान करते हैं। भगवान राम के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल वाल्मिकी आश्रम भी छत्तीसगढ़ के तुरतिया पहाड़ पर मौजूद है।